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कुछ सुझाव
गुरुवार, फ़रवरी 14, 2008
नन्हे-मुन्ने
Published :
2/14/2008 05:49:00 am
Author :
डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava)
नन्हे-मुन्ने शिशु कोमल फूलों की तरह होते हैं । उन्हें हर मौसम में बहुत देखभाल की जरूरत होती है । पशुओं के शिशु पूरी तरह से कुदरत के साथ जुड़े रहते हैं इसलिये उनपर मौसमों के बदलाव का कुछ विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है क्योंकि वे कुदरत द्वारा निर्धारित करे गये प्रजनन के मौसम में ही जन्म लेते हैं तो उनकी देखभाल तो कुदरत ही करती है । लेकिन मानव शिशु के पैदा होने का कोई निर्धारित मौसम नहीं होता है । तेज़ रफ़्तार जिन्दगी वैसे भी मनमाने तरीके से बेलगाम हुई चली जा रही है । आधुनिक जीवनशैली के चलते पैदा होते ही शिशु को कुदरत की ताकत का सामना करना पड़ता है । इस बचाव के चक्कर में बच्चे के पास रह जाती है कमज़ोर जीवनी शक्ति । गर्मियों में ए.सी. और कूलर्स हैं तो सर्दियों में रूम हीटर्स, गीजर्स हैं और बारिश में प्लास्टिक में लिपटे हुए नन्हे-मुन्ने तो हम सबने देखे हैं जिन्हें पानी की एक बूंद तक नहीं छू पाती है । बच्चे इस आधुनिक जीवनशैली के कारण "मदर-नेचर" के आशीर्वाद से सहज ही वंचित रह जाते हैं जोकि अन्यान्य प्राणियों की तरह मानवों को भी जीवनी शक्ति और कुदरती रोग प्रतिरोधन क्षमता का वरदान देना चाहती है । आयुर्वेद में बताया गया है कि हर मौसम में आहार-विहार व आचरण कैसा हो जिससे कि स्वस्थ रहा जा सकता है । माता पिता का दायित्त्व बनता है कि वे इस बात को समझ कर अपने बच्चों को छुईमुई न बना कर अधिकतम स्वस्थ रखने के लिये इस जानकारी को लें । आयु के आधार पर बाल्यावस्था में कफ का प्रभाव ,युवावस्था में पित्त तथा बुढ़ापे में वात का प्रभाव अधिक रहता है । इस हिसाब से एक तो आयु का प्रभाव ऊपर से सर्दी के मौसम का अपना निजी प्रभाव हमारे नन्हे-मुन्ने शिशुओं को कफ के प्रकोप से होने वाले रोगों जैसे जुक़ाम ,खांसी ,कफज ज्वर और न्यूमोनिया का आसानी से शिकार बना देता है । इस लिये यदि हम नन्हे-मुन्ने शिशुओं के आहार या स्तनपान कराने वाली माता के आहार में कफशामक द्रव्यों का समावेश रखेंगे तो इस मौसम की बीमारियों से आसानी से बचाव हो सकेगा ।
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ताल सिंदूर
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स्वर्णबंग क्षार
1 आप लोग बोले:
डाक्टर साहब, जनता की भलाई के लिए ये जो आपने आनलाइन आयुर्वेदिक दवाखाना खोला है, उसके लिए भूरि भूरि शुभकामनाएं।
देखिए, मैंने भड़ास पर इस दवाखाने के बारे में पोस्ट विस्तार से डाल दिया पर अभी कोई ससुरा इधर दवा ववा मांगने नहीं आया। सब मरेंगे गोली निगलते निगलते।
मैं कुछ आपसे सवाल करना चाहता हूं जो मेरे बच्चों के स्वास्थ्य से संबंधित है...
पिछले दिनों मेरे 6 वर्षीय पुत्र को जुकाम वगैरह हुआ और उन्हीं दिनों में सोते वक्त उसकी नाक बजने लगी थी। एक दिन तो उसकी नाक इतनी तेज बज रही थी कि मैं डर गया। मुझे दूसरे कमरे में जाकर सोना पड़ा। इतने छोटे बच्चे को बड़े लोगों जैसे खर्राटे की दिक्कत क्यों आई? क्या नाक की हड्डी वगैरह बढ़ने की प्राब्लम है क्या? जुकाम ठीक होने के बाद अब खर्राटे की आवाज थोड़ी धीमी पड़ी है पर खर्राटे अब भी लेता है। इसके लिए क्या करना चाहिए।
यशवंत सिंह (yashwantdelhi@gmail.com)
नई दिल्ली
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