गुरुवार, फ़रवरी 28, 2008

अगले हार्ट अटैक का इंतजार मत करिए...

डॉक्टर साहब मेरे पापा को एक बार गहरा हार्ट अटैक आ चुका है और बड़ी मुश्किल से उनकी तबियत में सुधार हुआ है । मैं चाहती हू कि आप कोई ऐसा उपचार बतायें कि दोबारा हार्ट अटैक का खतरा न हो तथा पापा स्वस्थ रह सकें । पैसे की चिन्ता न करें कितना भी खर्च हो चलेगा । उनकी रिपोर्ट आपको भेज रही हूं जो कि अभी एक माह पहले निकाली गयी हैं जब उन्हें दिल का दौरा आया था ।
प्रिया सोनकर ,झांसी
प्रिया जी आपके पापा की रिपोर्ट से वास्तव में मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है और न ही मैं एलोपैथिक निदान यानि डायग्नोसिस पर यकीन रखता हूं क्योंकि यदि डायग्नोसिस एलोपैथी के अनुसार हो और उपचार आयुर्वेद से तो भ्रम पैदा होना स्वाभाविक है । इसलिये आपने जो लक्षण विस्तार से अपने सवाल में लिखे हैं उनके आधार पर आपके पापा के स्वास्थ्य के प्रति आपको आश्वासन दिला सकता हूं कि अब उन्हें कभी दिल का दौरा नहीं पड़ेगा और उनका दिल एकदम स्वस्थ रहेगा । यह गारंटी मैं आयुर्वेद के प्रति विश्वास के आधार पर दिला रहा हूं । आपके पापा को निम्न दवाओं का सेवन लगातार छह माह तक कराइए और आयुर्वेद के गुण गायें -
१. वृहत वात चिन्तामणि रस ५ ग्राम + अकीक पिष्टी १० ग्राम + श्रंग भस्म १० ग्राम + मुक्ता पिष्टी १० ग्राम + गिलोय(गुळवेल) सत्व १० ग्राम , इन सबको मिला कर दो-दो रत्ती(२५० mg) की पुड़िया बना लें । सुबह शाम नाश्ते के बाद "खमीरागांवजबां" के एक चम्मच के साथ सेवन कराइए ।
२ . अर्जुन की छाल का चूर्ण १०० ग्राम + पोहकर मूल ५० ग्राम + लहसुन(सूखा) ५० ग्राम + मुलैहठी ५० ग्राम + शिलाजीत ५० ग्राम + दशमूल का चूर्ण ५० ग्राम को पीसकर मिला कर रखें और इस मिश्रण को "अर्जुनारिष्ट"के दो चम्मच के साथ सुबह शाम नाश्ते के बाद सेवन कराइए ।
३ . मिश्री १६०ग्राम + वंशलोचन ८० ग्राम + पीपर(छोटी या लेंडी पीपर भी कहते हैं) चूर्ण ४० ग्राम + दालचीनी १० ग्राम + छोटी इलायची के दाने २० ग्राम + गिलोय सत्व १० ग्राम + श्रंग भस्म १० ग्राम + पोहकर मूल ४० ग्राम ; इन सभी को भली प्रकार पिसवा कर सारे मिश्रण को २५० ग्राम शहद और ५०० ग्राम अर्जुन घृत में मिला कर अवलेह जैसा बना लें यह मिश्रण च्यवनप्राश की तरह से दिखेगा । इस मिश्रण की एक -एक चम्मच मात्रा सुबह-शाम सेवन कराइए । यदि डायबिटीज(मधुमेह) है तो इस मिश्रण में मिश्री का प्रयोग न करें ।
यदि आप ये सब खुद न कर पाएं तो किसी भरोसेमंद वैद्य को उचित पारिश्रमिक देकर बनवा लीजिए क्योंकि हो सकता है कि आप घर पर पर सही मापतौल न कर सकें या मिश्रण बनाने में दिक्कत हो ।

बुधवार, फ़रवरी 27, 2008

पारस पीपल

डा० साहब आपके ब्लाग पर गया, टिप्पणी करनी चाही पर ना जाने क्यों वो प्रकाशित नही हो पाई। आपसे एक प्रश्न है, कि क्या ये औषधि धूम्रपान पर भी उतनी ही कारगर है? यदि हां तो मुम्बई में कहां से मंगाई जा सकती है, मतलब ऐसे कौनसे स्थान हैं जहां पर ये दवाई उपलब्ध है।
धन्यवाद
अंकित माथुर
अंकित भइया ,टिप्पणी क्यों नहीं हो पाई ये तो माइक्रोसाफ़्ट वाले ही समझ सकते हैं रही बात धूम्रपान पर भी कारगर है का क्या अर्थ है ? आप पारस पीपल की ही बात कर रहे हैं न ? एक भड़ासियाना मज़ाक करने की इजाजत दीजिये कि भइया क्या बीड़ी ,सिगरेट या चिलम को चबा कर खा जाते हो और ऊपर से दो लोटा पानी पी लेते हो ? अरे मेरे प्यारे भाई , सौ प्रतिशत कारगर है मेरे चिकित्सा जीवन का निचोड़ है जो आयुषवेद पर लिख रहा हूं यशवंत दादा के कहने से । अपना पता मुझे मेल कर दीजिए मैं ही जंगल से लाकर कूट-पीस कर कुरियर से भेज देता हूं ,संकोच किस बात का है ;लिख भेजिए पता तत्काल-अत्यंत-तुरंत.................

थायराइड की समस्या

कई लोगों ने मुझसे जो सवाल पूंछा है उन सभी का उत्तर मैं अपने एक पुराने केस का संदर्भ देकर हल कर रहा हूं । यह केस भी आप लोगों की तरह ही थायराइड की समस्या से संबंधित था ।
मानव शरीर कुल मिला कर एक अत्यंत जटिल सी कम्प्यूटराइज्ड प्रतीत होती रचना है जो कि कई हार्डवेयर्स को संलग्न करके बनाई गई है जिसमें श्वसन तंत्र से लेकर पाचन तंत्र तथा रक्तपरिसंचरण तंत्र से लेकर प्रजनन तंत्र तक सभी अपने आप में बेजोड़ हैं । किन्तु एक बात है कि ये सारे तंत्र कहीं न कहीं से एक दूसरे पर अवलम्बित हैं । इस जटिल सिस्टम में लेकिन एक तंत्र ऐसा भी है जो स्वयं किसी पर विशेषतः अवलम्बित नहीं रहता बल्कि अपने द्वारा बाकी तंत्रों का नियमन करता है और इसकी विशेषता यह है कि इसके पुर्जे एक दूसरे से प्रत्यक्षतः जुड़े नहीं रहते हैं , यह है हमारा "एंडोक्राइन सिस्टम" । इस सिस्टम में यदि कोई पुर्जा कम या ज्यादा काम करने लगे तो हम अजीबोगरीब सी बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं । इसी सिस्टम का का एक पुर्जा है - थायराइड ग्रन्थि । यदि थायराइड ग्रन्थि में विकार आ जाएं तो विचित्र लक्षण पैदा हो जाते हैं । मैं प्रसंगवश यहां इस ग्रन्थि की क्रिया में हीनता के उपचार दे रहा हूं । देख लीजिए कि हो सकता है कि आप या आपके किसी परिचित को ऐसे लक्षण हों और आप उसे कोई अलग ही बीमारी मान कर इलाज करवा रहे हों क्योंकि मेरे पास जो रोगी आया था उसके घर के लोग तो उसकी झाड़फूंक करवा रहे थे । मरीज में पिछले सात वर्ष से इन लक्षणों से ग्रस्त था जबकि इसके पहले ये व्यक्ति अच्छे तरीके से कामधंधा करके घर चला रहा था किन्तु धीरे-धीरे न जाने क्या हुआ कि एकदम निकम्मा सा हो गया और नौकरी छोड़े घर पर पड़ा रहता है । जब मेरे पास मरीज को उसके घर वाले खटिया पर लाद कर लाए तो उसमें मुझे निम्न लक्षण मिले जिन पर आप भी ध्यान दें :-
१ . सारे बदन में सूजन
२ . खुरदुरी त्वचा
३ . आवाज में भारीपन और घरघराहट
४ . बैठे-बैठे ही ऊंघने लगना
५ . काम की इच्छा न होना
६ . वजन बहुत बढ़ गया था
७ . याददाश्त की कमी
८ . किसी व्यक्ति या वस्तु को भी पहचानने में कठिनाई हो रही थी
९ . पेशाब करने में तकलीफ़ हो रही थी
१० . कब्जियत रहा करती थी
११ . शरीर एक्दम बेकार सा हो गया था और पिछले सात वर्षों में मरीज अधिकांश समय बिस्तर पर पड़े-पड़े ही बिताता था ।
नाड़ी परीक्षण से तथा मौजूद लक्षणों से समझ में आ गया कि किसी भूत-प्रेत ने नहीं पकड़ रखा है बल्कि अवटु ग्रन्थि या थायराइड की हीनता के कारण ऐसा है । मरीज के घर वालों का मन रखने के लिये थायराइड फंक्शन टैस्ट भी करवा लिया अन्यथा कई बार मरीज और उसके घर वालों को लगने लगता है कि बाहर तो टैस्ट में ही हजारों रुपए खर्च हो जाते हैं और यहां तो डाक्टर ने बस हाथ पकड़ कर बिना कुछ ज्यादा पूंछतांछ के दवा लिखना शुरू कर दिया , इस बात का मनोवैज्ञानिक तौर पर गलत असर पड़ता है । जाहिर सी बात है कि थायराइड फंक्शन टैस्ट की रिपोर्ट ने उन लोगों के सामने मेरी बात की पुष्टि कर दी ।
रोगी को जो उपचार दिया वह आप भी जान लीजिए जिससे मात्र तीन माह में वह पुनः अपने काम पर लौट आया और जीवन सुचारू रूप से चलने लगा ।
गंडमाला कण्डन रस २५० mg की एक गोली
त्र्यूषणाद्य लौह २५० mg की एक गोली (कुछ कंपनियां इस औषधि को चूर्ण के रूप में बनाती हैं )
गोक्षुरादि गुग्गुलु २५० mg की दो गोली
कांचनार गुग्गुलु २५० mg की दो गोली
आरोग्यवर्धिनी वटी २५० mg की एक गोली
पुनर्नवा मण्डूर २५० mg की एक गोली (कुछ कंपनियां इस औषधि को चूर्ण के रूप में बनाती हैं )
इन सब दवाओं की एक खुराक बनाएं ,मात्रा थोडी ज्यादा लगती है किन्तु अतिशीघ्र लाभ करती है । इस पूरी दवा सुबह शाम दो बार खुराक शहद के साथ देकर ऊपर से दो चम्मच "दशमूलारिष्ट" के पिला दिया गया । ध्यान रहे कि व्यक्ति-देश -काल-बीमारी की तीव्रता के प्रभाववश कदाचित आपको यथोचित लाभ मिलने में कम या थोड़ा ज्यादा समय लग सकता है इस बात को लेकर जरा भी निराश न हों और साथ ही यदि प्राणायाम करते चलें तो सोने में सुगंध जैसी बात होगी ।

मंगलवार, फ़रवरी 26, 2008

कई नशों से छुटकारे के लिए एक ही रामबाण औषधि

वे लोग जो अन्जाने में ही किन्हीं व्यसनों से ग्रस्त हो गए हैं उनके लिए अपने वर्षों के श्रम ,शोध एवं अनुभव के आधार पर एक रामबाण तरीका बता रहा हूं । मुझे पूर्ण विश्वास है कि इसे आप धन कमाने के स्थान पर लोकहित में ही प्रयोग करेंगे । इसका उपयोग किसी एक विशेष नशे की आदत से छुटकारा पाने के लिए नहीं बल्कि कई तरह के नशों की आदत से छुटकारे के लिए मैंने प्रयोग कराया है और सफलता पाई है । इससे आप यदि इन नशीले पदार्थों के आदी हैं तो फिर देर किस बात की है बस अपने गुरू या इष्ट का स्मरण करके एक बार मन में यह विचार तो लाइए कि आपको उक्त नशा छोड़ना है फिर शेष काम तो यह चमत्कारी औषधि करेगी और कुछ ही दिनों में आप पाएंगे कि जादू हो रहा है कि जिस पदार्थ की आपको जानलेवा तलब होती थी वह पता नहीं कहां विलीन हो गई है । मैंने जिन पदार्थों पर इस श्रेष्ठ औषधि का प्रयोग किया है वे हैं : -
बीड़ी
सिगरेट
चिलम
चबाने वाली तम्बाकू
चाय
काफ़ी
अफ़ीम
अगर मौका लगेगा तो इसे नींद की गोलियां खाने वाले मरीजों के लिए भी अनुभव करूंगा ताकि उनकी इस नामुराद दवा (या जहर) से पीछा छूट जाए ।
पारस पीपल (यह एक बड़ा पेड़ होता है इसके पत्ते अचानक देखने में प्रसिद्ध पेड़ पीपल के पत्तों की तरह होते है तथा भिंडी के फूलों की तरह पीले फूल आते हैं तथा कुछ दिनों में ये फूल गाढ़े गुलाबी होकर मुर्झा जाते हैं ,इस पेड़ को मराठी में "भेंडी " ही कहा जाता है ) के पुराने पेड़ की छाल जो स्वतः ही पेड़ से अलग हो जाती है ,उसको लेकर खूब बारीक पीस कर मैदे की तरह बना लें व शीशी में भर लें । यह बारीक चूर्ण बारह ग्राम लेकर २५० मि.ली. पानी में हलकी आंच पर जैसे चाय बनाते हैं वैसे ही पकाएं और १०० मि.ली. पक कर रह जाने पर छान कर चाय की तरह ही हलका गर्म सा पी लीजिए । सुबह शाम नियमित रूप से पंद्रह दिनों तक सेवन कराने से मैंने पाया है कि मादक द्रव्यों की आदत छूट जाती है तथा नफ़रत सी होने लगती है । एकबार व्यसन छूट जाए तो पुनः इन दुर्व्यसनों को प्रयोग नहीं करना चाहिए फिर व्यसन से मुक्त होने के बाद मैं आदी व्यक्ति को दो माह तक बैद्यनाथ कंपनी का "दिमाग दोष हरी" नामक दवा का सेवन कराता हूं । अगर आपके क्षेत्र में पारस पीपल नहीं पाया जाता है तो किसी महाराष्ट्र में रहने वाले मित्र से मंगवाने में देर न करिए और लाभान्वित होइए । ईश्वर को धन्यवाद दीजिये कि उसने साधारण सी दिखने वाली चीज़ों में कैसे दिव्य गुण भर रखे हैं ।

शनिवार, फ़रवरी 23, 2008

शराब छोड़ने के साधुओं के आजमाए नुस्खे

शराब छोड़ने के लिए जो लोग इच्छुक होते हैं लेकिन वो मानते हैं कि उनकी कमज़ोर इच्छाशक्ति के चलते वे शराब नहीं छोड़ पा रहे हैं तो उन्हें ये नुस्खे अवश्य प्रयोग करने चाहिए । सोने-चांदी का काम करने वाले सोनारों के पास से शुद्ध गंधक का तेज़ाब यानि कि सल्फ़्युरिक एसिड ले आइए और आप जो शराब पीने जा रहे हैं उसके बने हुए पैग में चार बूंद यह तेज़ाब डाल दीजिए और जैसे सेवन करते है वैसे ही पीजिए और आप देखेंगे कि धीरे-धीरे आपकी शराब पीने की इच्छा अपने आप ही कम होने लगी है । इसी क्रम में आप एक दिन खुद ही शराब के प्रति अरुचि महसूस करने लगेंगे और पीना अपने आप छूट जाएगा ,ध्यान रखिए कि आप और कोई उपाय न करें बस खाने पर ध्यान दें कि स्वास्थ्यवर्धक आहार लें ।
दूसरा यह कि शिमला मिर्च(कैप्सिकम) जो कि मोटी-मोटी होती हैं व खाने में तीखी नहीं होती व सब्जी बनाने में प्रयोग करी जाती हैं ,ले लीजिए और उनका जूसर से रस निकाल लीजिए व इस रस का सेवन दिन में दो बार आधा कप नाश्ते या भोजन के बाद करें । आप चमत्कारिक रूप से पाएंगे कि आपकी शराब की तलब अपने आप घटने लगी है और एक दिन आप खुद ही पीने से इंकार कर देते हैं चाहे कोई कितना भी दबाव क्यों न डाले । ये दोनो उपाय सन्यासियों के आजमाए हुए हैं जोकि लोगों की शराब छुड़ाने के प्रसिद्ध रहे हैं ।
तीसरा तरीका उनके लिये है जो कि शिवाम्बु सेवन के पक्ष में हैं मैं यहां शिवाम्बु की महिमा नहीं बताउंगा क्योंकि वह एक विशाल विषय है और साथ ही कदाचित यहां उचित भी नहीं है । इतना जान लीजिए कि शिवाम्बु स्वमूत्र(अपने ही पेशाब) को कहते हैं । सुबह उठ कर यदि बीच की धार का सेवन करा जाए तो कुछ समय बाद स्वतः ही शराब के सेवन से अरुचि होने लगती है ।

शराब


कल की बात को आगे बढ़ाते हुए आज आपको बताउंगा कि चारों प्रकार के सिरोसिस में क्या-क्या लक्षण होते हैं और आपको किन-किन कष्टों का सामना करना पड़ता है । जिन्हें जान कर आप खुद ही निर्णय लीजिएगा कि आज मन का तनाव या थकान दूर करने के लिए क्या कल आप ये सब भुगतने के लिए तैयार हैं या नहीं ?
एट्रोफिक सिरोसिस(Atrophic cirrhosis) :- इसमें लीवर का आकार बहुत छोटा हो जाता है । वजन भी इसी अनुपात में घट जाता है । लीवर के नीचे के भाग में हाथ लगा कर देखने से यह टेढ़ा-मेढ़ा सा प्रतीत होता है । आपके पेट में जलन का एहसास होता रहता है । अपच की डकारें आती रहती हैं । अजीर्ण की अवस्था में खाए गए भोजन का ही वमन(उल्टी) होती है कभी-कभी श्लेष्मा यानि बलगम जैसी चिकनाई या रक्त का भी वमन हो
सकता है । साधारणतः प्लीहा(spleen) बढ़ जाती है। पेट में वायु भरके फूल जाता है । कब्ज बनी रहती है । पखाना तारकोल या अलकतरे की तरह काला सा आता है तथा दाहिनी ओर पेट में नसें उभर आती हैं । शरीर पीला पड़ कर कामला रोग हो जाता है । मूत्र का रंग गहरा लाल सा आता है ।
मस्तिष्क विकार होने लगते हैं । कामला रोग चरम पर आ जाने पर मूत्र का रंग गाढ़ा पीला हो जाता है और बदन पर सूजन आने लगती है यह सूजन दोनों पैरों से शुरू होकर ऊपर की ओर बढ़ती है तथा मुंह तक आ जाती है । अण्डकोष तथा जननेन्द्रिय फूल जाते हैं । हल्का सा बुखार बना रहता है जोकि तीसरे पहर बढ़ जाया करता है और कोमाटोज़ सिम्प्टम्स यानि बड़बड़ाना और चीखना चिल्लाना शुरू हो जाता है । जलोदर के भी लक्षण आने लगते हैं और धीरे-धीरे आप मौत के मुंह में समा जाते हैं ।
हाइपरट्रोफिक सिरोसिस(Hypertrophic cirrhosis):- इस स्थिति में आपका लीवर इतना बड़ा हो जाता है कि नाभि के पास तक का भाग लटक आता है । अचानक भयंकर तेज कामला के लक्षण उभर आते हैं मल का रंग पित्त की तरह हो जाता है । प्रायः १०२ से १०४ डिग्री फारेन्हाइट तक बुखार आ जाया करता है । आप प्रलाप करने लगते हैं । इस पीड़ा को आप छह सात बरस तक भुगतते रहते हैं लेकिन यदि इसमें एक्यूट एट्रोफिक
लक्षण भी मिल जाएं तो एकाएक मौत हो जाती है और जिसके लिये कोई भी सहसा तैयार नहीं रहता है ।
फैटी सिरोसिस(Fatty cirrhosis):- इसमें लीवर में अत्यधिक मात्रा में चरबी एकत्र हो जाती है । एट्रोफिक में भी चरबी रहती है पर कम रहती है । इस स्थिति में लीवर छोटा और संकुचित हो जाता है । जो लोग ये मानते हैं कि बीयर तो फायदा करती है उन्हें चेत जाना चाहिये कि यह रोग बीयर या ताड़ी जैसे कम एल्कोहाल कंटेंट वाली चीजों का परिणाम है और बाकी होने वाले लक्षण तो एट्रोफिक सिरोसिस जैसे ही होते हैं यानि कि उतना ही कष्ट होने वाला है ।
ग्लाइसोनिअन सिरोसिस(Glysonian cirrhosis):- यह रोग आपको बिना पानी मिलाए शराब पीने से होता है । इसमें लीवर का आकार छोटा हो जाता है और साथ ही बुरी तरह से क्षत-विक्षत भी हो जाता है । प्रायः सभी संयोजक तंतु मोटे पड़ जाते हैं और बढ़ जाते हैं बाकी लक्षण एट्रोफिक सिरोसिस के जैसे ही होते हैं ।
लगातार शराब पीते रहने से आप सिर्फ़ सिरोसिस ही नहीं कमाते बल्कि मदात्यय(Delirium Tremens ) नामक रोग भी हो जाता है । इस रोग में आपको भूत-प्रेत से लेकर मकड़ी,छिपकली,चुहे या सांप आदि जैसे जंतु दिखने लगते हैं । नींद आना बंद हो जाती है ,व्याकुलता रहने लगती है । अब आप यह सोचिए कि आप गिलास सजा कर कितनी सारी मुसीबतों को खुद ही निमंत्रण पत्र भेज रहे हैं ।
आपने लिखा है कि शाम होते ही सिर भारी होने लगता है और तलब महसूस होने लगती है । स्प्ष्ट सी बात है कि शाम होते ही आप अपने आप को तमाम कामों से अलग करके ऐसे कामॊं से जोड़ लेते हैं जो कि या तो महज मानसिक श्रम के होंगे या फिर आप खाली हो जाते हैं कि कोई काम नहीं रहता है । इसके लिए एक मात्र उपाय जो कभी भी असफल नहीं हुआ है वह है रोज शाम को स्नान करके संध्या-पूजा करने का ,इसमें आप चाहें तो गायत्री मंत्र से लेकर अपने गुरूमंत्र की १०८ जप करें यानि कि कम से कम एक माला यदि आप मुस्लिम हैं तो आयतल कुर्सी या दरुद शरीफ़ का जाप करिए ,ध्यान रहे कि शराब आपको नुक्सान पहुंचाने में आपका मज़हब नही देखती है । इसके बाद भोजन करके पत्नी बच्चों के साथ बातें करिए या बच्चों का होमवर्क करवाइए । अब जब पत्नी बच्चे सो चुके होंगे लेकिन आपके भीतर का शराब का आदी व्याकुल सा जाग रहा होगा कि नींद नहीं आ रही है । अब आपको मैं वह उपचार बताने जा रहा हूं जिससे हजारों शराब के आदी अब शराब को देखना तक पसंद नहीं करते ौर स्वस्थ व सुखी जीवन बिता रहे हैं । किसी अच्छी कंपनी का शहद या किसी से निकलवाया शुद्ध शहद एक किलो लाकर अपने पास रख लें ,चूंकि रोज की आदत है तो उसके अनुसार मन तलब पैदा करके आपको बाध्य करेगा कि एक पैग पी लेने में क्या हर्ज़ है ;जैसे ही यह विचार मन में आए कि चलो बिल्कुल थोड़ी सी पी लेता हूं उपचार कल से शुरू कर दूंगा उसी समय तुरंत मौका गंवाए बिना छह चाय के चम्मच भर कर शहद चाट जाइए फिर बीस मिनट बाद इसी तरह से छह चाय के चम्मच भर कर शहद चाट जाइए और शान्ति से बैठिए ,मन को देखिए कि वह कैसे आपसे चालबाजियां करता है शायद इस बीच फिर मन आपको शराब के लिए उकसाएगा पर जी कड़ा करके तीसरी बार फिरसे छह चाय के चम्मच भर कर शहद चाट जाइए । इस तरह एक घंटे में आप अठारह चम्मच शहद चाट लेंगे और अब देखिए कि शराब पीने की इच्छा समाप्त हो गयी है और न तो सिर भारी है और तनाव भी समाप्त हो गया है । वस्तुतः आप अपने शरीर में हो गयी पोटाशियम की कमी पूरा करने के लिये शराब पी रहे होते हैं और इसके लिए मस्तिष्क पूरे शरीर को न्यूरोलाजिकल संकेत भेजता है जिसे आप तलब कहते हैं और उसे पूरा करने के लिए आप शराब पी लेते हैं । एक बात जान लीजिए कि यदि शराब ही क्या कोई भी आदत आप छोड़ना चाहते हैं तो उसके लिए मात्र इच्छा का होना ही कारगर उपाय है और अगर दोस्तों की आदत छुड़वाना है तो अपनी शराब में यह होम्योपैथिक दवा प्रति लीटर में बारह बूंद मिला कर रख लें और यकीन मानिए कि जो लोग आपके साथ शराब पीते हैं वे दो महीने में खुद ही शराब पीना बंद कर देंगे,दवा का नाम है SPIRTAS GLANDIUM QUERCUS . यह वही दवा है जिसका प्रचार कर-करके तमाम दवाखानों ने करॊड़ो रुपए कमा लिए हैं । हम किस दवा कए बाद जब शराबी की आदत छूट जाती है तो उसे दो माह तक सुबह शाम दो-दो चम्मच गुलकन्द(प्रवाल मिश्रित) खिलाते हैं और इसके बीस मिनट बा्द दो चम्मच अश्वगंधारिष्ट बराबर पानी के साथ देते हैं । इससे उसका खोया स्वास्थ्य वापस आ जाता है । आप भी इसी तरह से अपनी टूटती हुई कसमों से बच सकते हैं और यदि नियमित रूप से प्राणायाम करते हैं तो फिर तो सोने में सुगंध जैसी बात है ।

शुक्रवार, फ़रवरी 22, 2008

शराब छोड़ना चाहता हूं .....

डाक्टर साहब, मेरा एक सवाल है। शराब छोड़ना चाहता हूं पर छोड़ नहीं पाता। सुबह कसम खा लेता हूं रोज कि नहीं पीनी। शाम होते ही सिर भारी होने लगता है और तलब महसूस होने लगती है। कोई ऐसी दवा या तरकीब बतायें ताकि शराब की तलब महसूस न हो।दूसरा सवाल है कि अगर मैं पिछले 15 साल से लगभग रोजाना पांच पैग दारू पी रहा हूं तो मेरा लीवर इस वक्त किस स्थिति में होगा। इसे ठीक रखने के क्या क्या देसी उपाय हो सकते हैं। मैं बहुत झिझकते हुए ये सवाल पूछ रहा हूं। कृपया उत्तर विस्तार से देने की कृपा करें। आपका आभारी रहूंगा। विनय, नई दिल्ली

**आत्मन मित्र,आपने अपनी जो स्थिति बताई उससे दुःख हुआ कि आपको दुर्भाग्य से शराब जैसी गन्दी चीज का व्यसन है लेकिन अब एक आशा की किरण दिख रही है क्योंकि आपने स्वयं ही अपने स्वास्थ्य के विषय में चिन्ता प्रकट करी है । आपकी अपने स्वास्थ्य के प्रति यही चिन्ता एक दिन आप्को अपने भीतर छिपे एक नये इंसान से मिलवाएगी जो पूर्णतः निर्व्यसनी होने के साथ बलिष्ठ एमं दूसरे शराब के लती लोगों को राह दिखाने वाला होगा । आपने लिखा है कि बहुत झिझकते हुए सवाल पूंछ रहा हूं ,अरे मेरे भाई जब शराब पीने में नहीं झिझकते हो तो उसे छोड़ने का विचार तो बहुत स्वागत योग्य है उसमें कैसा हिचकिचाना या झिझकना ।
पहली बात कि यदि आप यह मानते हैं कि आप जो कर रहे हैं वह गलत और नुक्सानदेह है तो फिर जान लीजिए कि आपने पहली परीक्षा तो सौ प्रतिशत अंको से उत्तीर्ण कर ली है । आप शराब छोड़ने के लिए कसम मत खाइए क्योंकि आपने स्वयं लिखा है कि आप रोज सुबह कसम खाते हैं और शाम को फिर कसम टूट जाती है इससे शराब तो नहीं छूटती बल्कि मन में खुद के कमजोर इच्छाशक्ति का होने का बोध जरूर आ जाता है । इसलिए आज से शराब छोड़ने की कसम खाना बिलकुल बंद कर दीजिये । अब हम मुद्दे की बात करते हैं कि जिससे आप जान सकें कि आपके शरीर में ऐसा क्या होता है कि जानते हुए भी कि ऐसा करना नुक्सानदेह है आप सब भूल कर शराब पी लेते हैं जिसे आपने तलब का नाम दिया है । इसके लिए पहले मैं आपको शराब से होने वालए नुक्सान बताउंगा जिससे कि आप को यह समझ आएगा कि आप अपना सर्वनाश अपने ही हाथों से कर रहे हैं ,तब तलब को भी जीतना आसान होगा क्योंकि आप एक समझदार इंसान हैं जो भला बुरा समझता है । हो सकता है कि आपको ऐसे भी लोग मिले हों जिनमें कुछ डाक्टर भी हों जो कि कम मात्रा में ली गयी शराब को बुरा नहीं बल्कि लाभदायक मानते हैं ऐसे लोग आपको दुनिया भर के उदाहरण दे डालते हैं कि अमुक औषधि में एल्कोहाल है और वह फ़लां रोग में फ़ायदा करती है जबकि उसमें तो एल्कोहाल का अनुपात तुम्हारी शराब से कहीं बहुत ज्यादा है या फिर अरे होम्योपैथी की अधिकतर दवाओं का आधार ही एल्कोहाल है या आयुर्वेद की कितनी दवाओं मे एल्कोहाल कंटेंट है वगैरह-वगैरह....... । यकीन मानिए कि ऐसे दोस्तों से बड़ा आपके परिवार और आपका कोई शत्रु नहीं है ।
शराब के लम्बे समय तक सेवन करने से आपको लीवर यानि कि यकृत में जो परेशानियां होती हैं पहले उन्हें जान लीजिए फिर आगे उपचार आदि सब बताता चलता हूं । आपका लीवर और किडनी शरीर के ऐसे अंग हैं जो कि आपके शरीर के इनपुट और आउटपुट को नियंत्रित रखते हैं । शुरूआती दौर में में शराब पीने से लीवर में दाह जैसी अनुभूति होती है लेकिन आप इसे शराब के साथ लिये गये नमकीन या काजू आदि के पाचन में उलझा कर नजरअंदाज कर जाते हैं और धीरे-धीरे जब कुछ माह बीत जाते हैं तब आपको पता चलता है कि पहले जिस शराब को आप बस थकान या मानसिक तनाव दू्र करने के लिये पी रहे थे उसकी मात्रा बढ़ती जा रही है । पहले तो एक ही पैग में काम चल जाता था अब दो पैग लेना पड़ रहा है ,इस तरह धीरे से यह आपके शरीर में पहले मेहमान बन कर आती है और फिर आपके मन और देह दोनो पर काबिज़ हो जाती है और कसमों का टूटना शुरू हो जाता है । आपके लीवर की पोर्टल वेन(portal vein) की छोटी-छोटी शाखाएं और आस-पास के संयोजक यानि जोड़ने वाले तंतु या ऊतक (tissues) रोगग्रस्त होकर नष्ट होना प्रारंभ हो जाते हैं । जानिए कि टिश्यूज़ क्या हैं ? किसी मकान में जैसे ईंट ,पत्थर ,मिट्टी ,चूना या सीमेंट व रंग का इस्तेमाल होता है वैसे ही आपके शरीर मे निर्माण में रस ,रक्त ,मांस ,अस्थि ,मेद ,मज्जा ,और शुक्र का उपयोग होता है ।इनकी कायनात या समष्टि ही यह आपका शरीर है । अक्सर आप जिस रोग से घेरे जा रहे होते हैं वह है "सिरोसिस ऒफ़ लीवर" (Cirrhosis of liver) । इस रोग में लीवर के ऊपरी ऊतक नष्ट हो जाते हैं व लीवर कड़ा और सिकुड़ा हुआ हो जाता है तथा आकार में छोटा पड़ जाता है । यह अवस्था इसलिये होती है कि लीवर में रक्त वाहिनी नलिकाओं में बाधा आने लगती है । फलतः जो लक्षण आपके शरीर पर दिखते हैं उनमें आपको बहुत कमजोरी महसूस होना ,आंख-मुंह बैठने लगते हैं ,पसलियां बाहर दिखने लगतीं हैं ,लीवर में तेज़ असहनीय दर्द होता है और चूंकि रक्तवाहिनियां अवरुद्ध हो चुकी होती हैं तो लीवर पर सूजन आने लगती है ,प्लीहा(spleen) भी बढ़ जाती है ,छाती और पेट के ऊपर की नसें फूलकर उभर आती हैं । इसी क्रम में आप दवा भी खा लेते हैं और शराब का सेवन भी जारी रखते हैं और धीरे-धीरे जब आप सुबह उठते हैं तो जी मचलाता रहता है या कभी तो उल्टी भी हो जाती है ,सारी-सारी रात नींद नहीं आती और करवटें बदलते रात बीत जाती है ,पेट में गड़बड़ी रहने लगती है ,पेट फूला हुआ सा प्रतीत होने लगता है साथ ही हल्का सा बुखार बना रहने लगता है । मूत्र की मात्रा कम होने लगती है ,पैर सूजने लगते हैं और पेट में पानी भरकर जलोदर रोग होने की स्थिति हो जाती है ।
मुंह और लैट्रिन से रक्त आ सकता है ,दिमाग़ी वहम होने लगते हैं जैसे कि आप बेहोश हो जाएं और अण्ट-शण्ट प्रलाप करने लगें जैसे कि आपकी पत्नी और बच्चे आपको मार डालना चाहते हैं वगैरह-वगैरह...,फिर मूर्च्छा गहराने लगती है और इसी हालत में मौत आपको घेर लेती है । इस तरह आपके भीतर की हजारों अच्छाइयां बस आपकी एक कमजोर आदत के कारण आपके साथ चली जाती हैं । आपको ऐसा बोलने वाले भी मिल जाते होंगे कि यार मौत तो एक दिन आनी ही है तो क्यों न मजे कर के मरें ,मन क्यों मारा जाए , मरते तो वो भी हैं जो शराब नहीं पीते हैं , लीवर सिरोसिस तो शराब न पीने वालों को भी हो सकता है इत्यादि....। सबसे पहले तो ऐसे लोगों से सम्पर्क सीमित कर दीजिए ताकि अनावश्यक बातों का जहर दिमाग में न आए । आपको होने वाल रोग सिरोसिस ऒफ़ लीवर प्रायः चार तरह का होता है :-
१. एट्रोफिक सिरोसिस(Atrophic cirrhosis) , २. हाइपरट्रोफिक सिरोसिस(Hypertrophic cirrhosis) , ३. फैटी सिरोसिस(Fatty cirrhosis) ,४. ग्लाइसोनिअन सिरोसिस(Glysonian cirrhosis) .
आज आपने जाना कि आपकी पसंदीदा शराब जो इस समय गिलास में है वह कितनी जानलेवा है ,कल आगे बताउंगा कि आप इस नामुराद से कैसे पीछा छुड़ा सकते हैं................

बुधवार, फ़रवरी 20, 2008

आधाशीशी(माइग्रेन)

मैं पेशे से शिक्षिका हूं ,मानसिक श्रम काफी होता है मेरे काम में और क्लास में शोर मचाते बच्चे तो जान के दुश्मन प्रतीत होते हैं । सुबह उठने के साथ ही सिर में दर्द होना शुरू हो जाता है और दोपहर में लंच टाइम तक तो ऐसा लगने लगता है कि दीवार में सिर मार कर फोड़ दूं , ऐसा लगता है कि सिर में कील ठोंकी जा रही हो या सिर में बम फट रहे हों । कभी सिर के द्दंए हिस्से में और कभी बांए हिस्से में दर्द होता है दोपहर के बाद में दर्द कम होने लगता है लेकिन पूरी तरह से ठीक नहीं होता है ,रात में ठीक रहता है । डाक्टर को दिखाने पर उन्होंने सिरदर्द के लिए दवा दे दी लेकिन उसका असर बस दो घन्टे तक ही रहता है फिर से वैसा ही दर्द होने लगता है डाक्टर ने रोग का नाम माइग्रेन बताया है । अक्सर कब्ज़ रहती है और कभी-कभी जुकाम भी हो जाया करता है। क्या आयुर्वेद में कोई परमानेण्ट इलाज है ?
** बहन जी ,आपका रोग आयुर्वेद में आधाशीशी और सूर्यावर्त नाम से जाना जाता है । पहले आप यह जान लीजिए कि एलोपैथी में इसका कोई इलाज नही है जो भी दवा दी जाती है वह दर्द दूर कर देती है कुछ समय के लिए लेकिन मूल कारण दूर नहीं कर पाती जिस कारण फिर से दर्द होने लगता है । पहले आपकी कब्जियत दूर करनी होगी जो कि आपकी बीमारी की जड़ है जिसके लिये आप रात में सोते समय अपने कॊष्ठ के अनुसार कब्ज निवारण के लिये सवा लीजिए फिर तीन दिन तक यह दवा लेने के बाद बंद करदें और आगे ऐसा भोजन लिया करें जो कब्ज न किया करे इस लिए अंडे ,तैलीय भोजन और चाइनीज खाने से परहेज़ करें(जैसा कि आपने बताया था कि आपको रात के खाने में चाईनीज पसंद है)
१ . रात्रि भोजन के बाद एक चम्मच पंचसकार चूर्ण गुनगुने पानी में चोल कर पी लीजिए ।
२ . सुबह उठकर नित्यकर्मों से निपट कर जिस ओर दर्द हो रहा है उस ओर के नथुने में इस घोल की दो बूंदे डाल लें । एक कप पानी में एक चम्मच सैंधव (सेंधा) नमक मिला कर घोल बना लें । सेंधा नमक वह नमक है जो लोग उपवास में खाया करते हैं ।
३ . किसी अच्छी निर्माणशाला का बना हुआ नारायण तेल लेकर सुबह माथे पर जहां कनपटी का क्षेत्र है वहां उंगली से हलके से ५-१० मिनट मालिश करें ।
आपको आश्चर्य होगा कि आपको जीवन भर कैसा भी सिरदर्द होगा पर आधाशीशी (माइग्रेन) नहीं होगा ।

मंगलवार, फ़रवरी 19, 2008

लकवा या पक्षाघात

डा.साहब मेरे पिताजी की उम्र ५५ वर्ष है । उनको ब्लड प्रेशर हाई रहा करता है लेकिन पिछले सप्ताह उन्हें हाई बी.पी. के कारण लकवा मार गया है । अब वे बिस्तर पर हैं और पूरी तरह से चल-फिर सकने को मोहताज हैं । पिताजी को अक्सर जुकाम रहा करता है और बलगमी खांसी भी आती है । वालंटरी रिटायरमेंट लेने के कारण अब वे घर पर ही रहा करते हैं । हम लोग मधम वर्गीय परिवार से हैं इसलिए ज्यादा धन खर्च कर पाना संभव नहीं है, कोई उपचार बताइए ।
:-समीना शेख
** समीना बहन,आपके पिताजी को पक्षाघात का दूसरा दौरा नहीं हुआ यह सौभाग्य की बात है । आपके पिताजी की रिपोर्ट को देखकर जो दवाएं देना फलप्रद है वे निम्न हैं -
१ . ताप्यादि लौह एक-एक गोली सुबह शाम गुनगुने पानी से
२ . एकांगवीर रस एक-एक गोली सुबह शाम दो चम्मच महारास्नादि काढ़े से
३ . वातचिन्तामणि रस एक-एक गोली सुबह शाम दो चम्मच महारास्नादि काढ़े से
{ये दोनो दवाएं साथ में ले लीजिए}
४ . आरोग्यवर्धिनी वटी एक-एक गोली सुबह शाम
५ . सुबह खाली पेट ५(पांच) मिली. मालकांगनी का तेल सेवन करा दें
शेष सभी दवाएं खाली पेट न दें । खाने-पीने में वात बढ़ाने वाले भोजन का त्याग कर दें । यदि पिताजी मांसाहार करते हों तो कबूतर का शोरबा बना कर दीजिए अन्यथा लहसुन को दूध के संग खीर जैसा बना लें दोनो ही समान प्रभावकारी हैं । इस उपचार को लगातार छह माह तक जारी रखिए और हालत में हुए परिवर्तन सूचित करिए ।

सोमवार, फ़रवरी 18, 2008

सायटिका

सर मैं रेलवे में सहायक चालक के पद पर कार्यरत हूं । मेरा ड्यूटी पर आने जाने का कोई समय नहीं रहता कभी सुबह,कभी दोपहर और कभी मध्य रात्रि में जाना होता है । ड्यूटी के घंटे भी निश्चित नहीं रह्ते कि कितने समय बाद घर वापिस आना होगा । ड्यूटी के दौरान खाने पीने का कोई समय निश्चित नहीं होता है । कभी-कभी टट्टी-पेशाब को घंटो रोकना पड़ जाता है ।
कब्जियत रहती है । ड्यूटी के समय इंजन से पच्चीसों बार ऊपर-नीचे चढ़ना उतरना पड़ता है । पिछ्ले एक माह से बांए पैर में कमर से लेकर एड़ी तक एक नस में बहुत ही तेज दर्द की
लहर सी उठती है जैसे बिजली सी चमकी हो । कभी-कभी एसिडिटी भी महसूस होती है । सोने का कोई निर्धारित समय नहीं होता है । रेलवे अस्पताल में दिखाने पर डाक्टर ने "ब्रूफ़ेन"
नामक दवा दे दी है जिसे खाने पर कुछ घंटो तक आराम रहता है लेकिन फिर वैसा ही हो जाता है और इस दवा के लगातार प्रयोग से पेट ज्यादा गड़्बड़ रहने लगा है । उपचार बताइए क्योंकि डाक्टर ने कहा कि शायद नर्व की प्राब्लम है तो आपरेशन करना होगा और मैं आपरेशन नहीं करवाना चाहता ।
** आपके द्वारा बताए गए लक्षणों के आधार पर आप ग्रधसी यानि कि सायटिका से पीड़ित हैं । आपको आपरेशन करवाने की कोई आवश्यकता है ही नहीं । आपका रोग दरअसल आपकी अनियमित दिनचर्या की उपज है लेकिन नौकरी तो छोड़ नही सकते तो कुछ दवाएं लीजिए और स्वस्थ हो जाइए हां एक बात का ध्यान रखिए कि बासी आहार से बचें । कुछ दिन तक छुट्टी लेकर विश्राम करें तो बेहतर रहेगा ।
१ . सुबह शाम भोजन से पहले दो-दो गोली आमपाचक बटी गुनगुने पानी से लें ।
२. महायोगराज गुग्गुलु की दो-दो गोली पीस कर महारास्नादि क्वाथ(काढ़े या कषाय) के दो चम्मच के साथ निगल लें, दो बार । भोजन के आधे घंटे बाद लीजिए ।
३. विषतिन्दुक वटी दिन में दो बार लें भोजन के बाद महायोगराज गुग्गुलु के संग ही ले लें ।
४. रात्रि को सोते समय एक चम्मच गन्धर्व हरीतकी को गुनगुने पानी के साथ ले लें ।
५. सुबह-शाम नारायण तेल से हल्के हाथ से मालिश करें ।
इस उपचार को कम से कम चालीस दिन तक जारी रखिए और ध्यान रखिए कि एलोपैथी में आपकी बीमारी का कोई स्पष्ट उपचार नहीं है । अतः शरीर को कीमती जानिए कहा है कि काया राखे धरम है यानि शरीर स्वस्थ है तो सब अच्छा है ।

शुक्रवार, फ़रवरी 15, 2008

बच्चे के खर्राटे....

मैं कुछ आपसे सवाल करना चाहता हूं जो मेरे बच्चों के स्वास्थ्य से संबंधित है...पिछले दिनों मेरे 6 वर्षीय पुत्र को जुकाम वगैरह हुआ और उन्हीं दिनों में सोते वक्त उसकी नाक बजने लगी थी। एक दिन तो उसकी नाक इतनी तेज बज रही थी कि मैं डर गया। मुझे दूसरे कमरे में जाकर सोना पड़ा। इतने छोटे बच्चे को बड़े लोगों जैसे खर्राटे की दिक्कत क्यों आई? क्या नाक की हड्डी वगैरह बढ़ने की प्राब्लम है क्या? जुकाम ठीक होने के बाद अब खर्राटे की आवाज थोड़ी धीमी पड़ी है पर खर्राटे अब भी लेता है। इसके लिए क्या करना चाहिए। यशवंत सिंह (yashwantdelhi@gmail.com)नई दिल्ली
** आपके बेटे की समस्या गम्भीर तो नहीं है पर समस्या रखी ही क्यों जाए ,इसलिए समाधान और निदान भी लिख रहा हूं
जैसा कि आपने बताया है कि पूर्व में बच्चा प्रतिश्याय यानि ज़ुकाम से ग्रस्त हुआ है । बहुत सम्भावना है कि बच्चे की समस्या से परेशान हो कर आपने कोई उष्णवीर्य औषधि दे दी होगी जिससे कि नासिका मार्ग से स्रवित होकर जो मल बाहर निकल जाता वह शुष्क हो गया है । ध्यान दीजिये कि कथित सर्जन इसे नाक की हड्डी का बढ़ना बता कर आपरेशन की सलाह देते हैं और आपकी जेब काटते हैं थोड़ा विचार करिए कि नाक की हड्डी अगर बढ़ सकती है फिर तो देह की कोई भी हड्डी इसी तरह विकारग्रस्त होकर बढ़नी चाहिए लेकिन ऐसा हरगिज नहीं होता है ये सब मूर्ख बनाने की बाते हैं । बच्चे को खेल-खेल में पांच दस बार अनुलोम -विलोम प्राणायाम करा दिया करें । औषधि के तौर पर यदि चाहें तो किसी भी अच्छी कंपनी का षड्बिन्दु तैल ले लीजिए और सुबह-शाम दोनो नासिका छिद्रों में तीन-तीन बूंद टपका कर कुछ देर गरदन के नीचे तकिया लगा कर लिटा दें ताकि तेल बाहर न आ जाए । बच्चा तेल को मुंह में भी खींच ले तो परेशान न हों कोई हानि नहीं होगी । दो-तीन दिन में बच्चा स्वस्थ हो जाएगा लेकिन बची दवा का क्या करें तो वह भी इसी प्रकार सेवन करा दें क्योंकि यह तेल दुबारा जुकाम के प्रति बच्चे में प्रतिरोधन क्षमता भी विकसित कर देगा और उसे थोड़ा बहुत अपथ्य करने पर भी आसानी से विकार नहीं होगा ।

गुरुवार, फ़रवरी 14, 2008

नन्हे-मुन्ने



नन्हे-मुन्ने शिशु कोमल फूलों की तरह होते हैं । उन्हें हर मौसम में बहुत देखभाल की जरूरत होती है । पशुओं के शिशु पूरी तरह से कुदरत के साथ जुड़े रहते हैं इसलिये उनपर मौसमों के बदलाव का कुछ विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है क्योंकि वे कुदरत द्वारा निर्धारित करे गये प्रजनन के मौसम में ही जन्म लेते हैं तो उनकी देखभाल तो कुदरत ही करती है । लेकिन मानव शिशु के पैदा होने का कोई निर्धारित मौसम नहीं होता है । तेज़ रफ़्तार जिन्दगी वैसे भी मनमाने तरीके से बेलगाम हुई चली जा रही है । आधुनिक जीवनशैली के चलते पैदा होते ही शिशु को कुदरत की ताकत का सामना करना पड़ता है । इस बचाव के चक्कर में बच्चे के पास रह जाती है कमज़ोर जीवनी शक्ति । गर्मियों में ए.सी. और कूलर्स हैं तो सर्दियों में रूम हीटर्स, गीजर्स हैं और बारिश में प्लास्टिक में लिपटे हुए नन्हे-मुन्ने तो हम सबने देखे हैं जिन्हें पानी की एक बूंद तक नहीं छू पाती है । बच्चे इस आधुनिक जीवनशैली के कारण "मदर-नेचर" के आशीर्वाद से सहज ही वंचित रह जाते हैं जोकि अन्यान्य प्राणियों की तरह मानवों को भी जीवनी शक्ति और कुदरती रोग प्रतिरोधन क्षमता का वरदान देना चाहती है । आयुर्वेद में बताया गया है कि हर मौसम में आहार-विहार व आचरण कैसा हो जिससे कि स्वस्थ रहा जा सकता है । माता पिता का दायित्त्व बनता है कि वे इस बात को समझ कर अपने बच्चों को छुईमुई न बना कर अधिकतम स्वस्थ रखने के लिये इस जानकारी को लें । आयु के आधार पर बाल्यावस्था में कफ का प्रभाव ,युवावस्था में पित्त तथा बुढ़ापे में वात का प्रभाव अधिक रहता है । इस हिसाब से एक तो आयु का प्रभाव ऊपर से सर्दी के मौसम का अपना निजी प्रभाव हमारे नन्हे-मुन्ने शिशुओं को कफ के प्रकोप से होने वाले रोगों जैसे जुक़ाम ,खांसी ,कफज ज्वर और न्यूमोनिया का आसानी से शिकार बना देता है । इस लिये यदि हम नन्हे-मुन्ने शिशुओं के आहार या स्तनपान कराने वाली माता के आहार में कफशामक द्रव्यों का समावेश रखेंगे तो इस मौसम की बीमारियों से आसानी से बचाव हो सकेगा ।

मंगलवार, फ़रवरी 12, 2008

एक गोली रोजाना का कुचक्र



एक समय हुआ करता था कि बुज़ुर्ग लोग कहा करते थे कि जब बीमारी खत्म हो गयी है तो दवा नहीं खाना बल्कि खाना तो क्या घर में भी मत रखना चाहिए वरना बीमारी फिरसे लौट आती है । हमारी आयुविषायक सोच जिसे हम आयुर्वेद के द्वारा जानते हैं किन्तु दुर्भाग्य है कि मुख्यधारा (?) के लोग उसे मात्र एक असभ्य और गंवारू चिकित्सा पद्धति मानते हैं ;वह भी हमे यही सिखाता है कि रोग की समाप्ति के उपरांत औषधि की आवश्यकता समाप्त हो जाती है क्योंकि औषधि तो मात्र किन्हीं दोषों के कारण उत्पंन विकार के निर्मूलन के हेतु होती है एवं जब देह के धारकों कफ-पित्त-वात में साम्यावस्था आ जाती है तो औषधि की आवश्यकता भी समाप्त हो जाती है ।
बहुराष्ट्रीय कंपनिया जब तक आयुर्वेद को नहीं समझ पातीं तब तक उसे हाशिए पर ढकेले रहेंगी । इन कंपनियॊं ने अपना सारा धन व श्रम एक निर्धारित दिशा में ही लगाया है कि किस तरह वे विकासशील देशों को अपनी प्रयोगशाला व बाजार बना सकें ।
एक बात की तरफ तो हमारा ध्यान ही नहीं जाता है कि ऐलोपैथी ने जिन बीमारियों का इलाज खोजा है वे किस हद तक कारगर हैं जैसे कि अस्थमा (दमा) ,हाई या लो ब्लडप्रेशर ,डायबिटीज या फिर परिवार नियोजन की बात हो जब तक आप दवा लेते हैं तभी तक प्रभाव होता है अन्यथा फिर वैसी ही स्थिति हो जाती है यानि कि एक गोली रोज़ाना लीजिए और अब तो एड्स के लिए भी ऐसी गोली पेश कर दी गयी है जो कि रोज़ाना लेने से एड्स का रोगी स्वस्थ जीवन बिता सकेंगे और जब तक जीवन है आप किसी भी रोग से
पीड़ित हो गए तो यदि आप ऐलोपैथी का चुनाव करते हैं तो फिर शेष जीवन आप इन कंपनियों के ग्राहक बन जाते हैं और आप अपनी मेहनत की कमाई का एक अंश जीवन भर इन्हें देते रहते हैं या फिर तंग आकर अंततः तमामोतमाम जटिलताएं लेकर आयुर्वेद की शरण में आते हैं तो क्यों न प्रारंभ से ही आयुर्वेद अपनाएं और इन बहुराष्ट्रीय कंपनियॊं के एक गोली रोजाना के कुचक्र से सावधान रहें ।