बुधवार, अप्रैल 30, 2008

मैं एक एलोपैथिक प्रेक्टिशनर हूं.......

डॉ.रूपेश जी, नमस्कार; मैं पिछले कुछ दिनों से आयुषवेद लगातार देख रहा हूं। ये एक बहुत सराहनीय प्रयोग है। मैंने आयुर्वेद की एक सम्मानित मासिक पत्रिका में आपका एक अत्यंत ही मौलिकता से परिपूर्ण शोधपत्र "एड्स में ज्वर की लाक्षणिकता पर अनुभव" पढ़ा। मैं एक एलोपैथिक प्रेक्टिशनर हूं। मुझे आपके आयुर्वेद के ज्ञान से एक बात जाननी है जो कि हर एलोपैथी के चिकित्सक के लिये समस्या होती है लेकिन शायद ये उनकी मजबूरी रहती है कि वे आपसे सलाह नहीं ले सकते क्योंकि भारत में अभी भी एलोपैथी को बाकी दूसरी चिकित्सा पद्धतियों के मुकाबले में श्रेष्ठ समझा जाता है। मैंने पाया है कि अल्सर से लेकर तपेदिक(टी.बी.) तक में और एड्स से लेकर ब्लड कैंसर तक या अन्यान्य रोगों में ज्वर यानि बुखार(fever) एक गम्भीर लक्षण के तौर पर रहता है और एलोपैथी में इसे नियंत्रित करने के लिये हम जो दवाएं देते हैं उनके पर्याप्त दुष्प्रभाव होते हैं ये बात मैं और आप भली प्रकार जानते हैं इस लिये मेहरबानी करके मुझे ज्वर नियंत्रित करने के लिये कोई आयुर्वेद का रामबाण उपाय बताइये।
"एक चिकित्सक" नाम व पता निवेदन पर गुप्त रखा गया है....
आत्मन बंधुवर, सर्वप्रथम तो आयुर्वेद में आस्था दर्शाने के लिये मैं आपको समस्त आयुर्वेद अनुरागियों की तरफ से साधुवाद देता हूं। आपने सही कहा है कि ज्वर एक महाघोर लक्षण रहता है किसी भी रोग के दौरान और यदि ये नियंत्रित न रहे तो मरीज धीरे-धीरे उपचार के दौरान ही मौत के मुंह में चला चाता है। यदि आपकी तरह सब लोग निःसंकोच ऐसे ही आयुर्वेद को स्वीकारने लगें तो इस विश्व का उद्धार हो जाए और साथ ही साथ पर्यावरण आदि की समस्यों का स्वतः ही समाधान हो जाएगा। लीजिये आपके निवेदन पर आयुर्वेद के महासागर के मोती बिना मूल्य पर प्रस्तुत हैं आशा है कि आप सब इस जानकारी से लाभान्वित होंगे---
१ . सुदर्शन चूर्ण एक माशा + गोदन्ती भस्म चार रत्ती + सितोपलादि चूर्ण एक माशा + प्रवाल पिष्टी दो रत्ती का मिश्रण बना लें व इस मिश्रण की खुराक दिन में तीन बार शहद के साथ दें ।
२ . जयमंगल रस एक गोली + सुवर्णबसन्तमालती रस एक गोली दिन में तीन बार शहद के साथ दें ।(इन रसौषधियों को कुछ फार्मेसियां इंजेक्शन के रूप में भी बनाती हैं जिन्हें कि निर्भय होकर प्रयोग करा जा सकता है)
३ . अमृतारिष्ट दो चम्मच + अभयादि क्वाथ दो चम्मच के साथ संशमनी बटी एक-एक गोली दिन में दो बार दे सकते हैं।
वैसे आयुर्वेद में प्रत्येक औषधि यथाविधि निदान के बाद ही दी जाना उचित है किन्तु कई ऐसी दवाएं हैं जिन्हें कि आप लक्षणों के आधार पर सहज ही दे सकते हैं और लक्षणों का शमन होने पर आगे अपनी चिकित्सा क्रम को जारी रख सकते हैं।

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