मंगलवार, नवंबर 18, 2008

वसंतकुसुमाकर रस व नवरत्न कल्पामृत रस

we want information for 'BASANT KUSUMAKER and NAVRATNA KALPAMIRUT'
pl. send me what is the use,benefit in HINDI
thanks in advance
vishnu k. gupta

Vishnuk Gupta
वसंतकुसुमाकर रस : - यह रस दिल को बल देने वाला, बलवर्धक, उत्तेजक,बाजीकरण,रसायन,मांसधातु बढ़ाने वाला है। स्त्री-पुरुष के जननएन्द्रिय सम्बन्धी विकारों पर इसका बहुत अच्छा प्रभाव होता है। मधुमेह, बहुमूत्र और हर तरह के प्रमेह, नामर्दी, सोमरोग,श्वेतप्रदर,योनि तथा गर्भाशय की खराबी, वीर्य का पतला होना, शुक्राणु संबंधी विकार, वीर्य संबंधी सभी शिकायतों को जल्दी दूर कर शरीर में नयी स्फूर्ति पैदा करता है। वीर्य की कमी से होने वाले क्षयरोग की यह बहुत उत्तम दवा है। दिल और फेफड़ों को इससे बल मिलता है। दिल की कमजोरी, शूल तथा मस्तिष्क की कमजोरी, भ्रम,याददाश्त की कमी, नींद न आना आदि विकारों को यह रस तत्काल दूर करता है। पुराने रक्तपित्त,कफ़ खांसी, श्वास,संग्रहणी,क्षय, रक्तप्रदर,श्वेतप्रदर,रक्त की कमी, बुढ़ापे के विकार तथा रोग छूटने के बाद आयी कमजोरी में इस रस का प्रयोग बहुत मुफ़ीद है। मधुमेह की यह प्रसिद्ध औषधि है। छोटी आयु में हस्तमैथुन,गुदामैथुन आदि से यदि वीर्यनाश करा हो या अधिक स्त्री प्रसंग से वीर्य पतला हो चला हो तो ऐसे में स्त्री विषयक चिंतन मात्र से ही वीर्यपात हो जाता है ,इस स्थिति में यह रस जादू की तरह से असर दिखाता है। इसके सेवन से वीर्य वाहिनी शिरा में वीर्य धारण करने की क्षमता बढ़ती है। पुराने नकसीर(नाक से रक्त आना) में यह बहुत प्रभावी तरीके से असर दिखाता है। जिस स्त्री को अधिक मात्रा रजःस्राव और अधिक दिन तक होता है उसके लिये भी यह औषधि अत्यंत उपयोगी है। ऐसी स्त्रियों को यदि जरा सा भी कट-छिल जाए तो रक्त का प्रवाह बंद होने में दिक्कत होती है। बुढ़ापे जब सारी इन्द्रियां शिथिल हो जाती हैं और सबसे ज्यादा शरीर के अन्दरूनी अवयव में ढीलापन आ जाता है,आंते कार्य करने में शिथिलता दर्शाने लगती हैं तब पाचन ठीक तरीके से नहीं हो पाता है। इस स्थिति का प्रभाव दिल एवं फेफड़ॊ पर विशेषतः पड़ता है। इन्द्रियों की शक्ति बढ़ाने के लिये,रस-रक्तादि धातुओं को बढ़ाने ,दिल,फेफड़ो व मस्तिष्क को सबल बनाने,शारीरिक कान्ति बढ़ाने,शुक्र व ओज को बढ़ाकर स्वास्थ्य को स्थिरता प्रदान करने के लिये यह परम उत्तम रसायन है। इस रस का लेने के तरीके में भेद से अनेक प्रकार से उपयोग करा जाता है।
नवरत्न कल्पामृत रस: - यह रस एक उत्तम रसायन महौषधि है। इसका एक वर्ष तक कल्प के रूप में भी प्रयोग करा जाता है। यह रस वातहर, वातानुलोमक,पित्तशामक,विषनाशक,रक्तप्रसादक,मस्तिष्क पुष्टिकर व दिल को बल देने वाला है। यह रस-रक्तादि धातुओं को पुष्ट व सबल करता है। ओज की बढ़ोत्तरी करता है। मुखमंडल की कान्ति बढ़ाता है। बवासीर, प्रमेह, मधुमेह, क्षय, जीर्णज्वर, श्वास-कास, मूत्राघात, मूत्र में मवाद(पूय) आना, जीर्णवात रोग, आमवात, उदावर्त, गैस बनना, अंदरूनी घाव, अर्बुद(कैंसर), कण्ठमाला, मदात्यय, दिल के रोग, विसूचिकादि की जीर्णावस्था में शक्ति प्रदान करने के लिये व विजातीय धातुकणों को बाहर निकालने के लिये यह मुख्य औषधि माना जाता है। यह समस्त इन्द्रियों, शारीरिक अवयवों, नाड़ियों मे भीतर मल, आम, मेद, विष, कीटाणु या अन्यान्य विजातीय द्रव्यों के संचय को रोक कर उन्हें बाहर निकाल देता है। चयापचय(मेटाबालिक) क्रिया को नियमित कर देता है। वात नाड़ियों, दिल, मस्तिष्क, किडनी एवं लीवर आदि इन्द्रियों को बहुत सबल बना देता है। तन्द्रा, आलस्य, शान्त नींद न आना, किसी कार्य में मन न लगना, मष्तिष्क में घड़ी के समान ठक-ठक सा महसूस होना, चक्कर आना, थोड़े से परिश्रम से बहुत थकान आ जाना जैसी स्थितियों में यह रस बहुत प्रभावी है। यह रस जीर्णवात रोग, आमवात, सन्धिवात, जीर्णसुजाक, फिरंगरोग, कण्ठमाला, अन्तर्विद्रधि अदि रोगों में बेहद प्रभावशाली है। यह सप्त धातुपोषक व वर्धक है। विभिन्न रोगों से जर्जर हो जाने वाले रोगियों पर जब मैंने इसका प्रभाव देखा तो वह चमत्कारिक था एकदम दुबले व बलहीन हुए मरीज पुनः भले चंगे होकर जीवन यापन करने लगे किन्तु यह एक अत्यंत मंहगी औषधि है क्योंकि इसमें माणिक्य, नीलम, पन्ना, पुखराज, वैदूर्य, गोमेद, मोती जैसे कीमती द्रव्यों की पिष्टियां मिलायी जाती हैं साथ ही स्वर्ण भस्म तथा शिलाजीत का भी समावेश होता है अतः बेहद आवश्यक है कि यह किसी विश्वस्नीय स्थान या व्यक्ति से ही लिया जाए अन्यथा नकली मिल जाने पर लाभ नहीं होता व व्यर्थ ही आयुर्वेद का नाम बदनाम होता है।

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